कभी कभी शब्द
खो देते हैं अपने मायने
अपने होने का अर्थ
हम पुकारते रह जाते हैं
पर आवाज़ कहीं गुम हो जाती है
पहुचती नही लोगों के कानों तक
या शायद भुल जाती है
गले से निकलना
या खो जाती है
किसी अंतहीन गली के
अंतहीन सिरों में …
तो इन शब्दो के मायने ही क्या
क्यू हैं ये हमारी ज़िंदगी में
मिट क्यू नही जाते ये
तब ना होगी पुकार
न होगा दंश
की किसी ने नहीं सुनी पुकार
तब
नही खोएंगे शब्द
अपना अर्थ
अपने होने के मायने
ओ शब्द तुम खो जाओ
खो देते हैं अपने मायने
अपने होने का अर्थ
हम पुकारते रह जाते हैं
पर आवाज़ कहीं गुम हो जाती है
पहुचती नही लोगों के कानों तक
या शायद भुल जाती है
गले से निकलना
या खो जाती है
किसी अंतहीन गली के
अंतहीन सिरों में …
तो इन शब्दो के मायने ही क्या
क्यू हैं ये हमारी ज़िंदगी में
मिट क्यू नही जाते ये
तब ना होगी पुकार
न होगा दंश
की किसी ने नहीं सुनी पुकार
तब
नही खोएंगे शब्द
अपना अर्थ
अपने होने के मायने
ओ शब्द तुम खो जाओ